By - Gurumantra Civil Class
At - 2024-08-11 16:45:00
उत्तरी बिहार का मैदान
यह मैदान समतल तथा चौरस है, जो गंगा नदी के उत्तर में विस्तृत है। घाघरा, गण्डक, बूढ़ी गण्डक, कोसी आदि नदियाँ इसे कई दोआबों में बाँटती हैं- घाघरा - गण्डक दोआब, गण्डक - कोसी दोआब एवं कोसी-महानंदा दोआब। यह मैदान हिमालय से निकलने वाली नदियों एवं इनके छोड़े हुए पुराने मागों से निर्मित है। इसकी सामान्य ढाल गंगा की दिशा में पश्चिम से पूर्व की ओर है परन्तु भाग में इसकी ढाल उत्तर पश्चिम से दक्षिण पूर्व की और है।
प्राकृतिक विभिन्नताओं के आधार पर इस मैदान को चार भागों में बाँटा जा सकता हैं:-
I. तराई (भाबर) तथा उपतराई क्षेत्र
II. भांगर भूमि (पुराना जलोढ़ क्षेत्र)
III. रवादर भूमि (नया जलोढ़ क्षेत्र)
IV. चौर और मन
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तराई (भाबर) तथा उपतराई क्षेत्र यह शिवालिक श्रेणी के नीचे पश्चिम से पूर्व की ओर एक संकीर्ण पट्टी में विकसित है, जो एक सपाट आर्द्र क्षेत्र है। इससे सटे दक्षिण में उपतराई क्षेत्र पाना जाता है, जो एक दलदली क्षेत्र है।
भांगर भूमि : इसके अंतर्गत प्राकृतिक बाँध एवं दोआब मैदान आते हैं। ये सामान्यतः आसपास के क्षेत्र से ऊँचे दिखते हैं। भांगर व खादर के बीच एक मध्यवर्ती ढाल स्पष्ट रूप से दिखता है। भांगर भी बाढ़ मैदान हैं लेकिन इसका निक्षेपण खादर की तरह प्रत्येक वर्ष नहीं होता।
खादर भूमि : यह नवीन जलोढ़ का विस्तृत क्षेत्र है, जिसका विस्तार गण्डक तथा कोसी के बीच है। इस क्षेत्र में नदियों द्वारा दियारा तथा छाड्न झील का निर्माण किया गया है। नदियाँ जब विक्षर्प बनाकर कई शाखाओं में बँट जाती है तो बीच में 'दियारा भूमि' (River Island) का निर्माण होता है- राधोपुर दियारा, सबलपुर दियारा। खादर भूमि प्रत्येक वर्ष बाढ़ से प्रभावित होती है, अतः यह अत्यंत उपजाऊ है।
चौर तथा मन: उत्तरी बिहार में अनेक जगह निम्न भूमि पायी जाती है, जिसे स्थानीय भाषा में 'चौर' (Chaur) कहा जाता है। वास्तव में ये नदियों के पुराने मार्ग हैं, जो वर्षा के समय पानी से भरे होते हैं। इस मैदान में नदियों के किनारे प्राकृक्तिक तटबंध पाये जाते हैं। सारण, चंपारण, मधुबनी आदि जिलों में नदियों की व्यक्त धाराओं से बनी छाड्न झीलों की बहुलता है, जो 'मन' कहे जाते हैं। इनका उपयोग मछलीपालन एवं मखाना उत्पादन के लिए होता है। चौर तथा मन जलजमाव के क्षेत्र हैं।
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